नज़र नही आती बूंदें
कभी कभी बारिश की फोटो में
कभी कभी गुम हो जाता है
बरसता पानी
पेड़ों की पत्तियों
घास के मैदानों
बरसाती नालों
हरियाली ओढ़े खेतों
या फिर पशु-पक्षियों में
और फिर छा जाता है जादू
हर जगह
हर ओर
हमेशा जरूरी नही होता
नज़र आना
प्रभाव छोड़ने के लिए
सोमवार, 28 अगस्त 2017
जादुई बारिश
मंगलवार, 15 अगस्त 2017
मन भयमुक्त हो जहां
मन भयमुक्त हो जहां
और मस्तक ऊंचा
ज्ञान जहां मुक्त हो;
और जहां दुनिया को
संकीर्ण घरेलू दीवारों से
छोटे छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है;
जहां शब्द सच की गहराइयों से निकलते हैं;
जहां थकी हुई प्रयासरत बांहें
त्रुटि हीनता की तलाश में हैं;
जहां कारण की स्पष्ट धारा है
जो सुनसान रेतीले मृत आदत के
वीराने में अपना रास्ता खो नहीं चुकी है;
जहां मन हमेशा व्यापक होते विचार और सक्रियता में
तुम्हारे जरिए आगे चलता है
और आजादी के स्वर्ग में पहुंच जाता है
ओ पिता
मेरे देश को ऐसा जागृत बनाओ”
रविवार, 23 जुलाई 2017
झूठ का स्वर्णकाल
सोमवार, 26 जून 2017
आपातकाल
हिंसक भीड़ द्वारा संचालित
शासनतंत्र में जीते हम,
आपातकाल के बाद की पीढ़ी के लोग
हैरान होते हैं आज
कि लोकतंत्र,
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और
विचारों की आज़ादी
को बेड़ियां पहनाने की
कोशिशें तब अनुचित मानी जाती थीं
रविवार, 11 जून 2017
कृषक अशांति
एक मत के अनुसार 1857 के विद्रोह के लिए जिम्मेदार कारणों में एक कारण कृषकों की बदहाली भी थी आखिर सैनिक सैनिक होने के पहले किसान ही थे सैनिक होते हुए भी किसान थे और सैनिक न रहने की बाद भी किसान ही रहने वाले थे। वर्दी पहन लेने भर से वे अपने समाज से अपनी नियति से और अपने आप से कट जाने वाले नहीं थे।
हम सभी जिनका किसी गाँव से कोई भी सम्बन्ध होता है कुछ होने न होने के साथ किसान भी होते हैं और किसानों को प्रभावित करने वाली हर चीज हमें प्रभावित करती है वर्दी पहने या जीन्स, खेती करें या नौकरी, अपने नाम पर जमीन हो या न हो
फोटो रेजीडेंसी लखनऊ की है जो दुनिया के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के विरुध्द उन्ही वर्दी पहने किसानों के सबसे प्रचंड विद्रोह का एक मजबूत गवाह है। संयोग से फोटो रेजीडेंसी के चर्चयार्ड की है।
शुक्रवार, 5 मई 2017
लोकपाल षड़यंत्र और गैंग अन्ना
2008 के मुम्बई आतंकी हमले से निपटने के सरकार के तौर तरीकों,
सामाजिक आर्थिक मजबूती करण की योजनाओं
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के बढ़ते प्रभाव और आर्थिक मंदी के सामने मजबूती से खड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था को देख और समझ रहे मतदाताओं ने सकारात्मक मतदान करते हुए कांग्रेस के तौर तरीकों के प्रति सहमति व्यक्त की थी। इन चुनावों के परिणामों में कुछ चीजें बड़े स्पष्ट तरीके से देखी जा सकती थीं।
जैसे शहरी मतदाताओं विशेषकर मध्यवर्ग का कांग्रेस के प्रति सकारात्मक रुझान और ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस की वापसी
उत्तर प्रदेश में जहाँ कांग्रेस लुप्तप्राय हो चली थी कांग्रेस की दमदार वापसी हुई थी ।
लोगों ने लाउड लौह पुरुषों को नकार कर मितभाषी सिख को चुना था।
इसके बावजूद कांग्रेस का एक कमजोर पक्ष था
भ्रष्टाचार!
भ्रष्टाचार का दाग कांग्रेस के लिए हमेशा से भारी पड़ता रहा है और यही वह हथियार था जिससे कांग्रेस के प्रति बढ़ती सकारात्मकता को नकारात्मकता में बदला जा सकता था।
सत्तापरिवर्तन के लिए बेकरार लॉबी ने सैनिक चुने
राजनैतिक उद्देश्य के लिए अराजनैतिक चेहरे
और 2010 के अंत में जब निर्भया प्रकरण के बाद इस जनांदोलन मिसाइल का टेस्टफायर चल रहा था तब एक दिन किरण बेदी के नाम से भेजा एक sms मोबाइल में पहुंचा लोकपाल के लिए प्रस्तावित संघर्ष का आह्वाहन।
धीरे-धीरे कई नाम सामने आये योगेंद्र यादव, अरुणा राय ,जस्टिस हेगड़े जैसे कुछ नामों को छोड़ कर बाकी नामों पर हमें कभी भरोसा नहीं रहा था। इन नामों पर भरोसे के बावजूद इस संघर्ष में हमें छिपी साजिश नज़र आ रही थी।
हमें एक संगठन विशेष की छाप हर जगह नजर आ रही थी। वो संगठन जिसका प्रचार तंत्र काफी मजबूत रहा है और अभी 2009 में मुंह की खा चुका था। जिसकी भारत के बाहर बसे भारतीयों में और शहरी मध्यवर्ग में अच्छी पकड़ थी।
संघर्ष तेज हुआ
जैसे अभी नहीं तो कभी नहीं अब तो लोकपाल ले कर ही मानेंगे
सरकार का राजनैतिक नेतृत्व संघर्ष के रिस्पॉन्स में प्रभावी नहीं था। सत्तापक्ष की सबसे मजबूत नेता, जिसने बाजपेयी, महाजन, आडवाणी जैसे धुरंधरों को रणनीतिक रूप से धूल चटाई थी और करात जैसे हठधर्मियों को आइना दिखाया था , अस्वस्थता के चलते राजनैतिक रूप से निष्क्रिय थी। सत्तापक्ष समझ नहीं पा रहा था कि इसे राजनैतिक माने या अराजनैतिक और इसका प्रतिकार कैसे करें। याद करें भूख हड़ताल शुरू करने दिल्ली आये एक योग शिक्षक से मिलने सरकार ने अपने वरिष्ठ मंत्री भेजे
याद करें गैंग के सदस्यों को देश की आमजनता का प्रतिनिधि मानते हुए लोकपाल पर अंतिम निर्णय के लिए एक समिति बनाई गयी जिसमें गैंग अन्ना के और सरकार के सदस्यों की बराबर की भागेदारी थी परंतु सरकार से इतर जनप्रतिनिधियों की कोई गणना नहीं थी। प्रमुख विपक्षी दल ने इसका विरोध तक नही किया( शायद गैंग अन्ना के सदस्य अंततः उसी के प्रतिनिधि थे और वह छद्म लड़ाई लड़ रहा था)
सरकार के प्रतिकार के तौर तरीकों में अपरिपक्वता और अनिर्णय स्पष्ट नज़र आ रहा था। यह संसदीय लोकतंत्र की अवहेलना थी। गैर भाजपा दलों ने सरकार के इन तौर तरीकों विरोध भी किया। परंतु दक्ष प्रशासकों के समूह ने गंभीर राजनैतिक गलतियां कीं
मुफ़ीद समय
मुफ़ीद तरीका
मुफ़ीद हथियार
जब धीरे धीरे वे लोग जिनपर हमें भरोसा था आंदोलन से अलग होने लगे तो हमें यकीन हो गया कि हमारा जजमेंट इस आंदोलन को लेकर सही था।
2013 आते-आते दिल्ली की सबसे प्रभावी और सफल मुख्यमंत्री की बलि लेकर इस आंदोलन ने 2014 की दशा और दिशा स्पष्ट कर दी।
जिन घोटालों पर जन मानस रोष में था आज वे कहाँ हैं
-निर्भया सी घटनाओं पर अब कोई समूह प्रतिक्रिया नहीं होती
- कलमाड़ी , राजा आदि लोग जो मनमोहन सरकार में जेल गए थे आज मोदी सरकार में कहाँ हैं।
- शरद पवार पद्म सम्मान पा रहे हैं
- रविशंकर (गैंग और उसके प्रायोजक दोनों इनके भक्त हैं) यमुना प्रदूषित करते हुए लोगों को जीने के तरीके सीखा रहे हैं।
- जो तुरंत काला धन वापस मंगवाने के लिए आमरण अनशन कर रहा था वो सरकारी सहयोग से अकूत सम्पदा जुटाने में लगा है
- दूसरे गांधी प्रहसन में अपना किरदार अदा करके वापस जा चुके हैं
मामला भ्रष्टाचार से हट के हिन्दू-मुस्लिम पे जा चुका है
लोकपाल का तो शुरू से ही कोई इरादा नहीं था
मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017
युद्धोन्मादी समाज में शान्ति की वकालत
बॉर्डर फिल्म के अंत में एक गाना था "मेरे दुश्मन , मेरे भाई"
युद्ध पर बनी इस फिल्म में ये गाना युद्ध की खिलाफत करता हुआ शान्ति की वकालत करता है। उस समय देश देशभक्ति को लेकर इतना संवेदनशील नहीं हुआ था नहीं तो लोग इस गाने के रचयिता, गायक और फिल्म के निर्माताओं का विरोध करते, अपनी (घृणित) मानसिकताओं का प्रदर्शन करते। उस समय लोग इस फिल्म को देखने को ही देशभक्ति मानते थे.
देश के एक प्रधानमंत्री बस जिसे सदा-ए -सरहद का नाम दिया था उसे लेकर पाकिस्तान गए। उद्देश्य था जंग के खिलाफ एक मज़बूत पहल , शान्ति की वकालत। शायद लोग जानते नहीं थे कि पाकिस्तान इस देश का दुश्मन है नहीं तो प्रधानमंत्री जी लाहौर चले तो गए थे पर वापस नहीं आ पाते।
शनिवार, 11 फ़रवरी 2017
आजादी
भविष्य का फैसला है आज पर टिका है